IGNOU MPS 002 Notes Environmental Approaches in Hindi


IGNOU MPS 002
Chapter- 7
Environmental Approaches in Hindi

पर्यावरणीय उपागम
पर्यायवरण की कोई सीमा नहीं होती है। वायु, जल, वन तथा भूमि है, तथा उनकी प्राकृतिक संरचना इस प्रकार है की लोगों और उनके राष्ट्रों को एक दूसरे के निकट लाया गया है। इन सभी संसाधनों को प्रकृति ने समस्त मानव को प्रदन किया है। समाज को बिना किसी भेदभाव के प्रदान किया है। और यही अब अंतराष्ट्रीय राजनीती के विवादों का करना बन गया है। संसाधनों की उभरती कमी और विकसित तथा विकाशील देशों के बीच आय का बढ़ता अंतर एक बार फिर संसार को दूसरे विश्व युद्ध से भी बढे संकट की ओर ले जा रहा है। यही कारण है की G-8 अति आद्योगिक विकसित देशों का ध्यान रणनीतिक अस्त्रों मानव विनाश की पारस्परिक क्षमता के प्रसार से हट कर विश्व के संसाधनों जैसे वन, भूमि, कृषि, जल तथा प्रोगोकी को प्राप्त करने और उन पर नियंत्रण स्थापित करने की और चला गया है। क्योकि अब विचार-विमर्श सरकार और सैन्य बलों पर कम और परन्तु निम्न स्तर पर संसाधनों को नियंत्रित करने वाले लोगो की ओर अधिक केंद्रित हो गया है। केवल वर्तमान का विकास और पर्यावरण  की क्षति को रोकना ही काफी नहीं है। बल्कि उत्तर-दक्षिण के विभाजन को दूर करना भी उतना ही आवश्यक है। चाहे विश्व के भूमण्डलीये गांव बन गया है फिर भी उत्तर के देश आज भी जबरदस्त उपभोक्ता है। जबकि दक्षिण में आज  भी कमी और दरिद्रता है।क्योकि उनके अपने संसाधन उत्तर के आमिर देशों को उपलब्ध करवाने पड़ते है।



टिकाऊ विकास क्या है?

टिकाऊ विकास की व्याख्या करते हुए ब्रदर्लैंड आयोग ने कहा था कि विकास जो वर्तमान पीढ़ी कि आवश्यकताओ को पूरा करता है। परन्तु भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओ को पूरा करने की योग्यता को कम नहीं किया जा सकता।  अतः केवल वर्तमान पीढ़ी का विकास और पर्यावरण की शांति को रोकना ही काफी नहीं है।
टिकाऊ विकास  के लिए सदा भूमि, जल, वायु एवं वनो की क्षमता को ध्यान में रखना चाहिए क्योकि हमरी धरती पर जीवन को स्थिर रखने वाले यही चार संसाधन है। ओर यदि उनका क्षमता से अधिक प्रयोग किया जाये तो हम उन सदा के लिए खो देंगे।
विकास के लिए पीढ़ी विशेष के अंदर समानता ओर न्याय को ध्यान में रखना चाहिए। अतः विकास ऐसा हो जिसका लाभ समाज के सभी वर्गों को मिले।यदि उनका लाभ केवल वर्चस्वशाली वर्गों को मिलता रहेगा, तब उस वर्ग द्वारा संसाधनों के उपयोग से अन्य कमजोर वर्गों का नाश हो सकता है।
विकास के लिए सभी पीढ़ियों का ध्यान समता ओर न्याय के आधार पर रखना चाहिए इसका अर्थ यह हुआ की वर्तमान पीढ़ी भविष्य की पीढ़ियों के संसाधनों का उपयोग न करे  ऐसे करने से भविष्य में संसाधनों की क्षति को रोककर निर्धनता पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
1970 के दशक में पर्यावरण का महत्व इतना बढ़ गया है।  इसे संसार भर में सार्वजनिक निति के मूल आधार के रूप में देखा गया है। जिसने कुछ देशो को तो आर्थिक रूप से संपन्न  बनाया। वही दूसरी ओर कुछ देश  आर्थिक रूप से सम्पन्न न  हो सके। परन्तु कुछ देशो को यह सम्पन्नता इसलिए प्राप्त हुई क्योकि उन्होंने दुसरो के संसाधनों का आवश्यकता से अधिक प्रयोग किया। अतः वनो को काटना, आवश्यकत से अधिक मछली पकड़ना, या अत्यधिक पशुओ का वध करना, नदियों के पानी को प्रदूषित करना, हानिकारक गेसो को वायुमंडल में छोड़ना  आदि, यह सभी ऐसे मुद्दे है, जिन पर अंराष्ट्रिये नियंत्रण होना चाहिए। इस समस्त प्रक्रिया को टिकाऊ विकास के नाम से जाना जाता है। टिकाऊ विकासविकास सम्बन्धी नीतियों की सबसे बड़ी आलोचक सिद्ध हुई है। क्योकि तीव्र  गति का अद्योगीकरण  जोकि के वर्तमान पीड़ी के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के प्रयास करता है वह टिकाऊ नहीं हो सकता। तोलबा के अनुसार अर्थव्यवस्था का प्रबंध इस प्रकार किया जाए, की वह पर्यावण के संसाधनों की देखभाल कर सके, ताकि भविष्य  के  पीढिया भी उतना ही अच्छा या उससे भी श्रेष्ठ जीवन व्यतीत कर सके। “   

भूमंडलीकरण और टिकाऊपन
भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के द्वारा वस्तुओ और सेवाओं को एक देश से दूसरे देश में आदान- प्रदान करने पर जो भी रूकावट आती थी उसे भी समाप्त कर दिया गया यानि सभी प्रकार के करो को हटा दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व में बाजार शक्तिया स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकती है।  भूमण्डलीकर के द्वारा विश्व के लोग ने मिलकर एक समाज का निर्माण तो किया लेकिन इसने पर्यावरण को भी कई तरहों से प्रभावित भी किया है। भूमंडलीकरण के द्वारा विभिन्न देशो के बीच की अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन हुआ है। इसके द्वारा उपभोक्ता की जीवन शैली, उनकी मांग में भी बदलाव आने लगा है।

भूमण्डलीकर के द्वारा पर्यावरण को बचाने के लिए 26 अगस्त से 4 सितम्बर 2002 तक 192 देशो के टिकाऊ विकास पर विश्व शिकार सम्मेलन में मुश्किल से टिकाऊ विकास नीतियों के विषय पर आम सहमति बन सकी।यह सामान्य रूप से स्वीकार किया गया कि पर्यावरण कि क्षति तब तक बनी  रहेगी जब तक विश्व का नेतृत्व निर्धनता निवारण की स्पष्ट निति नहीं अपनाता। अतः टिकाऊ विकास के लिए वित्त प्राथमिक आवश्यकता है।विकास के लिए दी जाने वाली सहायता आद्योगिक देशो के रूप में दी जानी चाहिए। परन्तु यह सब कुछ दिखावा है। क्योकि विश्व राजनीती अभी भी पुरानी परम्पराओ पर आधारित है पृथ्वी शेखर सम्मेलन में 106 देशो के राज्याध्यक्षों  अथवा शासनाध्यक्षों ने तथा 9000 पत्रकारों ने भाग लिया।  पर्यावरण सम्बन्धी इस सम्मेलन में सार्वजनिक हित समूहों,  गैर सरकारी संगठनों व्यापारिक समूहों  ने बहुराष्ट्रीय निगमों के माध्यम से भाग लिया। जिसके अंतर्गत उत्पादन और उपभोग में असंतुलन और सरकार की कम होती सहायता को पर्यावरण के टिकाऊ विकास के मार्ग में मुख्य बाधा  माना गया है। मई 2002 में संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास आयोग का दसवां शिखर सम्मलेन हुआ  जिसके अंतर्गत कई विषयों पर विचार किया गया।

पर्वावरण विकास विवाद
आर्थिक  समस्याएँ पर्वावरण की क्षति का कारण होती है। तथा उसको  गंभीर बना देती है। लोन से दबे राष्ट्र अपनी उत्तरजीविका के लिए अपने पर्वावरण को भी नष्ट कर देते है। इस विवाद की उत्पति अमेरिका की अति सम्पनता की परिस्थियों में हुई जब 1950 और 1960 के दशकों में उसका आद्योगिक विकास अपनी चरम सीमा पर था। इस आद्योगिक ने भूमि और जल को, झीलों और तालाबों को मछली और वन्य जीवन को संकट में डाल दिया था।      
 कीटनाशक दवाओं का पर्यावरण पर जो बुरा प्रभाव पड़ा। उससे चिन्तिक अमेरिका इस निष्कर्ष पर पंहुचा की जो उपाए उसने विकास के लिए किये थे उनमे से कुछ स्वयं  के लिए खतरा बन गए। क्लब ऑफ़ रोम की रिपोर्ट (1972) में विकास नियोजको और उद्योगपतियों को चेतावनी का संकेत दिया गया।विकास और पर्यावरण के मध्य विवाद ने जैसे दोनों को परस्पर विरोधी बना दिया। ऐसा अनुभव किया गया की या तो कोई देश तीव्र गति से प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय उत्पादन बड़ा सकता था। या फिर स्वस्थ पर्यावरण का आनंद प्राप्त कर सकता था। दोनों का सह अस्तित्व संभव नहीं था।

स्टॉकहोम में 1972 में हुए सम्मेलन ने इस प्रयास की पहल कि की मानव पर्यावरण के लिए एक कार्य  योजना तैयार की जाये। इस सम्मलेन की एक सिफारिश पर जिस पर 114 राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किये थे।  संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक संयक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की स्थापना की जो कि पर्यावरण सम्बन्धी सहयोग समन्वय की केंद्रीय एजेन्सी के रूप में कार्यरत है। संसाधनों के उपयोग पर 1974 में कोकोयोक में एक गोष्ठी आयोजन  UNDP और  UNEP के द्वारा किया गया। इसमें विकास के उन कार्येक्रमॉ कि चर्चा हुई जो की पर्यावरण  के लिए हानिकारक थे। इसमें कहा गया कि आज मूल समस्या आर्थिक और सामाजिक कुप्रशासन और दुरूपयोग की है अतः स्वच्छ पर्यावरण एवं विकास में समन्वय के लिए यह आवश्यक था कि आर्थिक विकास कार्येक्रमॉ को नया रूप दिया जाएं।