MPS 002 Notes Realist and Neorealist Approaches


REALIST AND NEOREALLIST APPROACHES

यथार्थवादी एवं नव-यथार्थवादी उपागम

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यथार्थवाद क्या है (What is Realism)?

यथार्थवाद अंतराष्ट्रीय सम्बन्धो का सबसे महत्वपूर्ण उपागम है। यथार्थवाद राष्ट्रों के बीच सम्बन्ध कैसे है इस पर जोर देते है। यथार्थवादी शक्ति के सन्दर्भ में अंतराष्ट्रीय सम्बन्धो की व्याख्या करते है। यथार्थवाद ने मानव को लोभी और स्वार्थी किस्म का बताया है। यानि यथार्थवादी हर एक चीज़ के लिए मानव के स्वरूप को ही जिम्मेदार मानते है। हर व्यक्ति अपने हित के लिए शक्ति चाहता है और दूसरे लोगो पर विजयी होना चाहता है। जिससे समाज में संघर्ष पैदा होता है। इस तरह की स्थति अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी देखा जाता है। मोर्गेंथाऊ ने अपनी पुस्तक The Politics Among Nation (1948) में यथार्थवाद की व्याख्या की है। अंतराष्ट्रीय सम्बन्ध के क्षेत्र में यथार्थवाद, जिसे राजनीतिक यथार्थवाद या Real politics भी कहते है। आज भी सबसे प्रमुख विचारधारा के रूप में देखा जाता है। अंतराष्ट्रीय परिवेश के प्रमुख उपागम के रूप में यथार्थवाद का विकास 20 वी शताब्दी में हुआ। इसका विकास आदर्शवाद के विरोध प्रतिक्रिया स्वरुप हुआ। यथार्थवादियों ने इस बात पर बल दिया कि अंतराष्ट्रीय राजनीती का विज्ञान जिस रूप में है उसका अध्ययन करे। आदर्शवादी इस बात कि खोज करते थे कि यद्ध के क्या कारण थे। तथा उनसे स्थाई झुटकारा किस प्रकार मिल सकता है। और स्थाई शांति किस प्रकार संभव हो सकती है। इसके विपरीत यथार्थवादियों का मानना था युद्ध स्वाभाविक होते है।क्योकि मानव कि प्रकृति अधिकाधिक शक्ति अर्जित करने की है। जहा आदर्शवाद इस बात पर बल देता है कि अंतरष्ट्रीय सम्बन्ध का सञ्चालन नैतिकता पर आधारित होना चाहिए। वही यथार्थवाद का आधार शक्ति कि राजनीती और राष्ट्रीय हित का संवर्द्धन है।

यथार्थवाद के प्रकार (Types of Realism?) :-

1. परम्परागत यथार्थवाद ( Classical Realism )
पारम्परिक यथार्थवाद अंतराष्ट्रीय राजनितिक के उस विशाल विश्व दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। जोकि अनेक पीढ़ियों के योगदान से विकसित हुआ। इसमें Thucydides, मैक्यावली, हंस अनेक विद्वान शामिल है। प्राचीन यथार्थवाद यह मानता है कि सिद्धांतो को नीतियों के अधीन कर दिया जाता है। किसी भी राजनेता का कौशल इस बात से निर्धारित होता है कि विश्व राजनीती बदलती शक्ति संरचना के अनुसार स्वयं और अपने की ढाल ले। यर्थाथवादियो की अपनी विशेषता है कि वे मानव प्रकृति मूलतः नकरात्मक चित्रण करते है इनमे से प्रमुख विद्वानों रोनाल्ड नेबुर, हंस जे मोर्गेंथाऊ उनके जैसे अन्य विद्वानों का विश्वास है कि शक्ति के लिए लालसा मानव की प्रकृति में निहित होती है। यथार्थवादियों का विश्वास है की मानव प्रकृति में परिवर्तन नहीं होगा। इसलिए वे विश्व राजनीती में गुणात्मक परिवर्तन की सम्भावना के बारे में अत्यंत निराशावादी है। परिणामस्वरूप वे कूटनीतिक के पारम्परिक सिद्धांतो , शक्ति संतुलन, अंतराष्ट्रीय नैतिकता एवं विश्व जनमत और अंतराष्ट्रीय कानूनों का सहारा लेते है। ताकि मानव स्वभाव को नहीं राज्यों के राष्ट्रीय हितो के टकराव को सीमित किया जा सके। 2. समकालीन यथार्थवाद / नव यथार्थवाद (Contemporary Realism or Neo-realism)
नव यथार्थवाद का उदय 1980 के दशक में केनेथ वाल्ट्ज The Theory of International Politics (1979) के प्रभाव में हुआ। प्राचीन यथार्थवाद यह मानता है कि सिद्धांतो को नीतियों के अधीन कर दिया जाता है। वाल्ट्ज के विचारों का अंतराष्ट्रीय सम्बन्धो के विद्वानों पर महतवपूर्ण प्रभाव पड़ा। वाल्ट्ज के यह स्पष्ट मत था की अंतराष्ट्रीय व्यवस्था की संरचना का राज्यों के व्यवहार पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। उनके अनुसार आरजकता के कारन युद्ध को समाप्त करने के लिए सहयोग पर आधारित समझौते असंभव हो जाते है । आरजकता से अभिपर्यय यह है की संप्रभु राज्य के ऊपर और कोई ऐसे शक्ति नहीं है। जोकि उनके मध्य शांति स्थापित करवा सके। नव यथार्थवादियों का विश्वास है। कि सरकार का रूप चाहे लोकतान्त्रिक हो या समग्रवादी हो या का व्यक्तित्व कैसा है इस बातो का महत्व यद्ध की संभावना के सन्दर्भ में कम है। अधिक महत्वपूर्ण यह है की युद्ध तो आरजकता की स्थिति के कारण होता है। नव यथार्थवाद सुरक्षा अध्ययन के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार के नव यथार्थवाद को दी उप समूह में भी बाटा जाता है।अकरात्मक यथार्थवाद और रक्षात्मक यथार्थवाद। एक और आक्रामक नव यथार्थवाद सापेक्षिक शक्ति (relative power)पर बल देते है। वही दूसरी और रक्षात्मक नव यथार्थवाद उदारवादी की एक शाखा नव उदारवादी संस्थागत के साथ भ्रमित हो जाते है।

यथार्थवाद की प्रमुख अवधारणाएं ( Key Concepts in the Realist School )


1. राष्ट्रीय हित (National Interest) : अंतराष्ट्रीय व्यवाहर की व्याख्या और समीक्षा करने में , यथार्थवादी विचारक राष्ट्रीय हित की अवधारणा को सबसे महत्वपूर्ण मानते है। यह अवधारणा अंतराष्ट्रीय अवधारणा का मूल मंत्र है। विदेश निति के उद्देश्यों के रूप में राष्ट्रीय हित ही राज्यों के सभी निर्णयो का आधार होता है। इस सम्बन्ध में लगभग सभी यतवादी एकमत है। 2. राष्ट्रीय शक्ति (National Power) : शक्ति की अवधारणा के निश्चित अर्थ के विषय में विद्वानों में आम सहमति नहीं है। मोर्गेंथाऊ राजनीति को शक्ति के लिए संगर्ष मात्र मानता है।शक्ति को सापेक्षिक अवधारणा के रूप देखा जाता है। समकालीन संरचनावादी यथाथर्वादियो ने हाल के वर्षो में शक्ति की अवधारणा में और अधिक स्पस्ट लाने के प्रयास किये है। केनेथ वाल्ट्ज ने प्रयास किया की हमर केंद्र बिंदु शक्ति से ातकर सामर्थ्ये हो जाये। उनका सुझाव है की क्षमताओं की उनकी ताकत के आधार पर निम्नलिखित रूप से क्रमबंध किया जाना चाहिए ।जनसख्य या भूमि आकर, संसाधनों की स्थाई निधि, आर्थिक क्षमता, सैनिक बल, राजनितिक स्थयित्व और कौशल 3. राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) : यथार्थवादी विचारधारा में राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को राज्यों की विदेश नीतियों का मूल्य मन जाता है। मेकाइवली, वेबर आदि पारम्परिक यथार्थवादी विचारको ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वाधिक प्राथमिकता देते है। वे इस बात पर बल देते है की राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना राष्ट्रीय नेताओ का उच्चतम राष्ट्रीय हिट के रूप में लक्ष्य होना चाहिए। हेनरी किसिंजर के अनुसार किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा उसका प्रथम तथा अंतिम उतरदियत्व होता है। न ही इसके साथ समझौता किया जा सकता है और न ही इसको खतरे में डाला जा सकता है।

अंतराष्ट्रीय सम्बन्ध के यथार्थवादी उपागम के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत (Some Imnportant Theories in tlie Realist Approach to International Relations)


1. संघर्ष का सिद्धांत (Theory of Conflict) : संघर्ष यथार्थवादी उपागम का मूल उद्देश्य है। अंतराष्ट्रीय व्यवस्था की इस मौलिक वास्तविकता पर ही यथार्थवादी सुद्धांत का निर्माण हुआ। यथार्थवादियों के अनुसार मानव की संघर्षमय प्रकृति होने के कारण ही उनके मध्य शक्ति के लिए निरंतर सघर्ष होता रहता है।इसी के आधार पर यथार्थवादी अंतराष्ट्रीय व्यवस्था को आरजकता आधारित मानता है। अतः यह आत्म सहायता के सिद्धांत पर आधारित है। अंतराष्ट्रीय व्यवस्था की संरचना निरंतर चलने वाले संघर्ष एवं अनिश्चता की स्थाई स्थति की प्रतिक है। क्योकि उसमे किसी भी केंद्रीय सत्ता का आभाव है। अतः इस व्यवस्था में मैत्री, विश्वाश, और सम्मान के लिए कोई स्थान नहीं है।
2. शक्ति संतुलन का सिद्धांत (Theory of Balance of Power) : शक्ति संतुलन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे राज्य के व्यवहार को इस प्रकार नियमित करने का प्रयास किया जाता है। कि आक्रामक और विस्तारवाद को असंभव आना दिया जाए। इसका अर्थ यह हुआ कि अपने राष्ट्रीय हिट और राष्ट्रीय सुरक्षा की खोज करते हुए विभिन देश आपस में संधिया करते है।यदि विभिन देशो के बीच हुई इन संधियों को पर्याप्त उपाए करके एक दूसरे कि शक्ति को वर्चस्व में बदलने से रोक कर उसे संतुलित कर किया जाये तो शांति और स्थायित्व को दीघ्र कल के लिए सुनिश्चित किया जा सकता है। सभी यथार्थवादी इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि शक्ति संतुलन स्थाई स्थति नहीं है। यथार्थवादी इस तरह कि परिस्थति के लिए अंतराष्ट्रीय व्यवस्था में एक दूसरे के प्रति विश्वाश के आभाव को उत्तरदायित्व मानते है।
3. अवरोध का सिद्धांत (Theory of Deterrence) : अवरोध का सिद्धातं आधुनिक परमाणु युग में शक्ति संतुलन का ही दूसरा नाम है। इसको परमाणु कूटनीति भी कहा जाता है। और इसकी उत्पति शीत युद्ध के राजनय में हुई । शीत युद्ध का राजनय शब्दों का अभिप्राय राजनय के कुछ पक्षों से है। जिनका विकास द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत हुआ। 1940 के दशक के अंत से लेकर 1980 के दशक के अंत तक विश्व राजनीती संयुक्त राज्य अमेरिका और USSR मध्य तक चल रहे वैचारिक तनाव से प्रभावित रहित थी। पूर्व और पश्चिम के बीच चल रहे इस तनाव विरोध का एक ही लक्ष्य था वह इस बात पर निरंतर प्रयास की विश्वयापी परमाणु युद्ध न हो जाए। ऐसा संघर्ष होने से सम्पूर्ण अंतराष्ट्रीय व्यवस्था भंग हो सकती है। उसका विनाश हो सत्ता था। इस स्थति में अवरोध के सद्धांत कि उत्पति हुई इसे शीत युद्ध का सबसे मत्वपूर्ण कूटनीतिक प्रयास मन गया।

मोर्गेंथाऊ के छः सिद्धांत (6 Principles of Hans Morgenthau)


1. शक्ति के संदर्भ में राष्ट्रीय हितों की व्याख्या (Concept of interest defined in terms of Power) : यथार्थवाद राष्ट्रीय हितों की व्याख्या शक्ति के संदर्भ में ही करता है। किसी State के अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार का आधार और प्रेरक उसके विशुद्ध National interest होते हैं जिनका वह शक्ति द्वारा प्रसार करता है। सब राजनीति शक्ति प्राप्त करके तथा शक्ति का प्रयोग करके अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने में लगे रहते हैं। राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा ही विदेश नीति का आधार होती है। Morgenthau के अनुसार, “विदेश नीति का मूल उद्देश्य राजनीतिक लाभों की पाने के अलावा और कुछ नहीं है।”
2. राज्य आकांक्षाओं तथा विश्व के सामान्य नैतिक नियमों में पृथकता (Separation of state aspirations and general moral rules of the world) : राजनीतिक यथार्थवाद राज्य की नैतिक आकांक्षाओं तथा विश्व में प्रचलित नैतिक नियमों के बीच कोई सम्बन्ध स्वीकार नहीं करता। यह सिद्धांत समस्त राष्ट्रों को International Politics के रंगमंच का ऐसा कलाकार मानता है जो अपने अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति में संलग्न रहते हैं। राज्य शक्ति के आधार पर national interest की पूर्ति में लगे रहते हैं। इन्हीं के आधार पर राज्यों के कार्यों की विवेचना की जा सकती है। विश्व के सामान्य नैतिक नियम राज्यों पर लागू नहीं हो सकते।
3. राष्ट्रीय हितों पर परिस्थितियों का प्रभाव (Impact of circumstances on national interest) : यथार्थवाद स्वीकार करता है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक का सार राष्ट्रीय हित है। ये राष्ट्रीय हित वहीं तक मान्य होते हैं जहाँ तक Power द्वारा पूरे किये जा सकते सकें। इनके सम्बन्ध में कोई स्थायी तथा निश्चित दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता है। ये राष्ट्रीय हित सदैव से राजनीतिक का सार रहे हैं Morgenthau मानता है कि पारिस्थितिया राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करती हैं। उसकी मान्यता है कि “इतिहास के किसी भी युग में राजनीतिक क्रियाओं को प्रभावित करने वाले हित उन Political और social परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं जिनसे विदेश नीति का निर्माण होता है। इस तरह हित स्थिर नहीं होते और ये परिस्थितियों के अनुसार बदलते हैं। इसलिए बदलती परिस्थितियों में ही राजनीतिज्ञों को विदेश नीति का निर्धारण शक्ति को ध्यान में रखते हुये करना चाहिए। 4. राजनीतिक क्षेत्र पृथक स्वायत्तता रखता है (Political realism maintain the autonomy of political sphere) : Morgenthau’s राजनीतिक क्षेत्र की पृथक स्वायत्तता में आस्था रखता है। जिस प्रकार धन के आधार पर Economics, नीति के आधार पर नीतिशास्त्र और कानून के आधार पर विधिशास्त्र पृथक होता है उसी प्रकार राजनीतिक क्षेत्र भी पृथक होता है। राष्ट्रीय हित, संघर्ष और शक्ति के आधार पर international Politics का राजनीतिक क्षेत्र पृथक किया जा सकता है। यद्यपि इसके क्षेत्र में गैर राजनीतिक विचारों का भी एक स्थान होता है लेकिन उन्हें गौण समझा जाता है और राजनीतिक मानदंडों को ही प्रधानता दी जाती है। इसलिए यथार्थवाद International Politics के प्रति कानून और नैतिक दृष्टिकोण अपनाने के विरूद्ध है क्योंकि इससे राजनीतिक क्षेत्र की स्वायत्तता नष्ट हो जाने का भय है
5. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के मानव प्रकृति पर आधारित वस्तुगत नियम (Political realism believe that politics is governed by objective laws that have their roots in human nature.) : Morgenthau कहता है कि Politics वस्तुगत नियमों से संचालित होती है और इन नियमों का मूल मानव प्रकृति में होता है। इन नियमों को समझे बिना Political method के समाज का सुधार नहीं किया जा सकता। इन नियमों का हम छोड़ नहीं सकते क्योंकि ये सभी जगह और स्थायी होते हैं। मानव प्रकृति और मनोविज्ञान पर आधारित इस सिद्धांत से ही हम सही और गलत में अंतर कर सकते हैं तथा कल्पना के स्थान पर सचाई को समझ सकते हैं। मानव प्रकृति स्थायी है इसलिए इस पर आधारित नियम भी स्थायी होते हैं। इन्हीं के आधार पर International Politics को समझना चाहिए। हमारा प्रयत्न तथ्यों को मालूम करना तथा बुद्धि के आधार पर उनका स्पष्टीकरण होना चाहिए। विदेश नीति की प्रकृति का अनुमान राजनीतिक कामों तथा उनके प्रभावों का जाँच करके ही किया जा सकता है। 6. सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत राज्य पर लागू नहीं होते (Universal ethical theory does not apply to the state) : यथार्थवाद स्वीकार करता है कि नैतिकता के सार्वभौमिक सिद्धांत राज्यों पर ज्यों के त्यों लागू नहीं किये जा सकते हैं बल्कि उन्हें time और place के अनुसार बदलना पड़ता है। राज्यों पर नैतिकता का वह मापदंड लागू नहीं होता जो व्यक्तियों पर लागू होता है। राजनीति का महत्वपूर्ण गुण दूरदर्शिता और चालाकी ही है। Morgenthau’s मानता है कि राज्यों पर लागू नैतिकता देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार बदल जाती है। यहाँ नैतिकता का जो भी use होता है वह अमूर्त सिद्धांत के आधार पर न होकर लक्ष्यों की प्राप्ति की दृष्टि से होता है। यथार्थवाद राजनीतिक बुद्धि को सर्वोच्च गुण मानता है और Result के आधार पर कार्यों की जांच करता है।


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