Bahusanskritiwad Kya hai - Udarvaad

MPS 001 Political Theory | Multi Culturalism | बहुसांस्कृतिकवाद की अवधारणा |बहुसांस्कृतिकवाद और उदारवाद में क्या अंतर

बहुसांस्कृतिकवाद की अवधारणा:-

बहुसांस्कृतिकवाद एक ऐसा समाज है जहां पर विभिन्न दृष्टिकोण, मूल्यों, और विश्वासों को जेने वाले सामाजिक समूह है। बहुसांस्कृतिकवाद लोकतांत्रियकरण की परियोजना में अपना योगदान विभेद के एक ऐसे कारन की और इंगित करने वाला है। जिसकी ओर कम ध्यान गया है। और वह है - सांस्कृतिक पहचान बहुसांस्कृतिकवाद समूह विशिष्ट अधिकारों पर जोर देता है।देखा जाए तो यह अल्पसंख्यक संस्कृति की सुरक्षा व पोषण के लिए सामाजिक वयवस्थाओ पर जोर देता है। बहुसांस्कृतिकवाद का लक्ष्य अल्पसंख्यक संस्कृत समुदायों के प्रति भेदभावों को न्यूनतम तथा गैर विभेदीकरण के आदर्शो को प्रोत्साहित करना ।
प्रजातंत्र के सिद्धांत में बहुसंस्कृतिकवाद का एक विशिष्ट योगदान इसकी यह मान्यता है कि सांस्कृतिक पहचाने भी तटीकरण की एक स्त्रोत हो सकती है और उदारवादी राज्य के कार्य अल्पसंख्यक समुदाय को नुकसान पंहुचा सकते है। बहुसंस्कृतिकवाद ने हमारा ध्यान राज्य के भीतर दुर्बल अल्पसंख्यक सांस्कृतिक समुदायों द्वारा भोग रहे भेदभाव के प्रति खींचा है। और यह प्रदर्शित किया है। कि गैर- भेदभाव के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उदारवादी सिद्धांत की प्रभुताशाली परम्पराओ में बुनयादी पुनर्विचार की आवश्यकता है।

बहुसंस्कृतिकवाद के भीतर सांस्कृतिक विविधता का संरक्षण और प्रोत्साहन एक मुख्य मूल्य है। और इसका बलपूर्वक पक्ष लिया जाता है ताकि अल्पसंख्यक भेदभाव न्यूनतम हो और ऐसी दशाओ का निर्माण हो जिससे अल्पसंख्यक संस्कृति बची रहे तथा उन्नति करे ।

बहुसंस्कृतिकवाद के सिद्धांतकार यह तर्क देते है।कि उदारवादी राष्ट्र राज्य की नीतिया अल्पसंख्यक समुदायों को हानि पहुँचती है। है।बहुसंस्कृतिकवाद की नीतिया यह सुनिश्चित करना चाहती है की अल्पसंख्यक संस्कृतियाँ जैसे उनकी भाषा परम्पराए, तथा संस्थाए आदि सुरक्षित रहे तथा सार्वजानिक क्षेत्र में उनके साथ समानता का व्यव्हार किया जाये।

बहुसंस्कृतिकवाद और उदारवाद :-

उदारवाद ने मुख्य तौर पर समाज द्वारा आरोपित पहचानो जैसे धर्म रंग जाति तथा लिंग पर आधारित मतभेदों पर नजर डाली। उदारवाद ने औपचारिक समानता का तर्क रखा एक और अपने सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष मानते हुए आरोपित पहचानो पर आधारित वेदों तथा विशेष अधिकारों को नकारने की कोशिश की तो दूसरी और एक नागरिक के रूप में व्यक्ति की पहचान को सार्वजनिक क्षेत्र में एकमात्र प्रसांगिक वर्ग बनाया।

उदारवादी व्यक्ति की स्वायत्तता को पसंद करते हैं और उसके कार्यों में चयन करने की स्वतंत्रता तथा विकल्पों की उपस्थिति को सर्वाधिक प्राथमिकता मिली है इसके विपरीत बहुसांस्कृतिकवाद व्यक्ति की इस उदारवादी दृष्टिकोण को इस दलील से नकारता है कि एक सांस्कृतिक समुदाय के सदस्यता व्यक्ति के लिए मूल्यवान है, वह कम से कम अंगों में उसकी व्यक्तिगत पहचान को परिभाषित करता है।

भीखू पारीक और विल किमलिका दोनों ही बहुसंस्कृतिवाद के प्रमुख समर्थक माने जाते है। भीखू पारीक का मानना है की प्रत्येक मनुष्य अपनी संस्कृति से इस कदर जुड़ा होता है की वह संस्कृति तथा उससे सम्बंधित समुदाय उसके लिए मूलयवान होते है।
कीमलिका के अनुसार “जब हम व्यक्तियों से उनके सांस्कृतिक पहचानो को त्यागने की आशा करते हैं तब हम वास्तव में उन्हें कोई ऐसी चीज से वंचित करते हैं जिस पर कि उनका समुचित हक है इसीलिए लोकतंत्र के राजनीतिक संस्थाओं की प्रकल्पना करते वक्त हमें सांस्कृतिक समुदाय पहचानो के अस्तित्व को स्वीकारना चाहिए और इस समझ के साथ शुरुआत करनी चाहिए कि व्यक्ति मात्र एक राजनीतिक समुदाय अथवा राष्ट्र राज्य का सदस्य नहीं है वह एक सांस्कृतिक समुदाय का भी सदस्य हैं और अपनी सदस्यता से वह गहराई से प्यार करता है” फिर राजनीतिक तथा सार्वजनिक क्षेत्र से सांस्कृतिक समुदाय का बहिष्कार करने या उसे मान्यता से वंचित करने या उसे मान्यता योग्य ना मानने से व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचती है। टेलर का कहना है कि “जब सार्वजनिक क्षेत्र में सांस्कृतिक समुदाय का आदर कम होता है, तो उससे संबंधित व्यक्ति भी कम सम्मान की भावना विकसित कर लेते हैं, डरपोक हो जाते हैं और समाज में सफलतापूर्वक कार्य नहीं कर पाते बहुसांस्कृतिकवादियों के लिए एक सुरक्षित सांस्कृतिक संदर्भ एक उचित स्वायत्तता पूर्ण स्थिति तथा चयन करने के लिए एक आवश्यक दशाएं है।” उदारवादी लोकतंत्र की बहुसांस्कृतिकवादी ने आलोचना की। उदारवादी लोकतंत्र अपने सभी सदस्यों के लिए समान नागरिकता सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं। बहुसंस्कृतिकवाद का मानना है, वैसे तो समान नागरिक व राजनीतिक अधिकार सभी को दिए गए हैं। लेकिन अल्पसंख्यक सांस्कृतिक समुदाय के सदस्य सार्वजनिक क्षेत्र में नुकसान में रहते हैंतथा विभेद के शिकार होते हैं। क्योंकि राज्य अपने कानूनों तथा नीतियों द्वारा समाज के अल्पसंख्यक समुदायों की संस्कृति की पुष्टि करता है। उदाहरण के लिए भाषा, शिक्षा, छुट्टियों की घोषणा तथा वेशभूषा के संबंध में नीतियां बहुमत की संस्कृति को प्रतिबिंबित करती है । सामूहिक तौर पर राज्य की क्रिया बहुमत की संस्कृति को लोकप्रिय तथा घोषित करती है । और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावशाली संस्कृति के साथ संबंध को प्रोत्साहन देती है। जिससे अल्पसंख्यक समुदाय को हानि पहुँचती है। उदाहरण के लिए रविवार को एक सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा से धार्मिक ईसाई चर्च में प्रार्थना के लिए जा सकते हैं और अपने धर्म के आदेश के अनुसार रविवार को विश्राम के दिन के रूप में मना सकते हैं । लेकिन इस व्यवस्था में मुसलमान जो कि अपने धर्म के अनुसार शुक्रवार को दोपहर में पूजा करना चाहता है नुकसान में है क्योंकि शुक्रवार कार्य का दिन है उसे एक धार्मिक व्यक्ति के रूप में कोई समय छुट्टी का नहीं मिलता ।