अंतराष्ट्रीय सम्बन्धो में विज्ञान और प्रौघोगिकी की भूमिका


अंतराष्ट्रीय सम्बन्धो में विज्ञान और प्रौघोगिकी की भूमिका

IGNOU MPS 002 International Relations : Theory And Problems | Role of Science and Technology in International Relations

अंतराष्ट्रीय सम्बन्धो में विज्ञान और प्रौघोगिकी की भूमिका  IGNOU MPS 002 International Relations : Theory And Problems in Hindi, My IGNOU Solution

आधुनिक विज्ञान और प्रौघोगिकी का विकास: प्रौघोगिकी और अंतराष्ट्रीय सम्बन्धो के बीच सम्बन्ध अविराम और घनिष्ठ रहा है। मनुष्य की आदिकालीन राज्य व्यवस्था के समय से ही राज्यों की विदेश नीति की समस्याओ और अवसरों को परिवहन, संचार, कल्याण और आर्थिक उत्पादन के लिए उनकी प्रौघोगिकी ने प्रभावित किया है। राजनितिक भूगोलवेत्ताओं ने यह ज्ञात करने का प्रयास किया है, की मनुष्ये अपने भौगोलिक पर्यावरण द्वारा उत्पन्न दशाओ को अपनाने या बदलने में किस प्रकार सक्षम हुआ है। जैसे जैसे प्रौघोगिकी शांतये बड़ी है, व्यक्तियों, संगठनो, उद्योगों और सरकारों के लिए विकल्प भी खुले है। यह कहा जाता है कि वैज्ञानिक काल 16वी और 17 वी शताब्दी में यूरोप में आरम्भ हुआ प्रौघोगिकी विकास जैसे प्रिंटिंग प्रेस, टेलिस्कोप, माइक्रोस्कोप, घड़ियाँ और विज्ञानं और वैज्ञानिक अनुसन्धान के असख्य यन्त्र प्रमुख बौद्धिक गतिविधिया बन गयी है। 17 वी शताब्दी के प्रारम्भ में फ्रांसिस बेकन ने विकास, परिक्षण और सिद्धांत के सत्यापन के लिए अनुशासित विधि के महत्व को मान्यता दी और प्रकृति पर मनुष्य के प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि के उपाय के रूप में प्रयोगात्मक विज्ञान का समर्थन किया। 17 वी शतब्दी के प्राम्भ में ही विज्ञान की व्यावहारिक भूमिका को स्वीकारा गया। बेकन ने वैज्ञानिको से कारीगरों के तरीको का अध्यन्न करने और कारीगरों को विज्ञान का अधिक अध्ययन करने का आग्रह किया। इन विचारो को बढ़ावा देने के लिए बहुत से वैज्ञानिक और अकादमिया आगे आयी। औद्योगिक क्रांति 18वी शताब्दी में आरम्भ हुई। ब्रिटेन ने विश्व अर्थव्यवस्था में अपना उभरता हुआ नेतृत्व सुदृढ़ किया और पश्चिमी यूरोप तथा सयुक्त राज्य में कई अन्य अनुसंधान हुए। इस प्रकार औद्योगिक क्रांति सम्पूर्ण पश्चिम का परिदृश्य बन गया। संचार और अंकीय प्रौघोगिकीयों के परिवर्तन के फलस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्को का विस्तार बहुत तेजी से हुआ है। इसे सूचना क्रांति नाम ठीक ही दिया है। 19वी शताब्दी के आते आते संयक्त राज्य प्रौघोगिकी नवीनीकरण में यूरोप से आगे बढ़ने लगा। जिसके द्वारा संयक्त राज्य की अर्थव्यवस्था को विश्व की स्थिति में प्रमुख स्थान भी मिला। इंग्लॅण्ड की तरह संयुक्त राज्य ने औद्योगिक क्रांति के दौरान नवनीकरण को आत्मसात करने की और उनसे पूरा पूरा लाभ लेने की क्षमता अर्जित की। इसके विपरीत अन्य राष्ट्रों में किसी न किसी महतवपूर्ण सामाजिक संसाधन का आभाव रहा। जिसके बिना अनुसंधान को वाणिजियक सफलता में नहीं बदला जा सका। प्रौघोगिकी प्रगति में सामाजिक सहभागिता अत्यंत महतवपूर्ण है। बिना सामाजिक सभागिता के कोई भी राष्ट्र प्रौघोगिकी में उनत्ति नहीं कर सकता। कुशल क्रमिको के संसाधनों का अभिप्रायए ऐसे तकनीशिनियो की उपलब्धता है। जो नई वस्तुए बनाने और नयी प्रक्रिया का अविष्कार कर। विज्ञान और प्रौघोगिकी के विकास में प्रवृतियाँ:- 20वी शताब्दी के प्रारम्भ से ही प्रौघोगिकी विकास कार्य लगातार वियन पर निर्भर रहे है। औद्योगिक अनुसंधान प्रयोगशालालो के आविर्भाव ने इसे अच्छी तरह दिखाया है। आद्योगिक अनुसंधान प्रोग्शालाये सबसे पहली बार 19वी शतबी के अंत में स्थपित की गयी। उन्हें इसलिए स्थापित किया गया था क्योकि प्रौघोगिकी के वाणिजियक दोहन के लिए यह समझना आवश्यक हो गया था की वस्तुएँ जो कार्य करती है वे उसे कैसे और क्यो करते है और प्रौघोगिकी के विषय सामग्री के भाग के रूप में - बिजली, रसायनीक प्रक्रियाओं के लिए ऐसा विशिष्ट ज्ञान और प्रयोग आवश्यक है जो अनुभवी कारीगरों को भी सुलभ नहीं था। वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रोजोगिकीय विकास के लक्ष्य इतने व्यापक और विस्तृत हो हए है, कि ये अकेले एक ही वैज्ञानिक की क्षमता से परे हो गए है। जिसके लिए उन्हें एक टीम के सदस्य के रूप में प्राय: इंजीनियरो के आगे-पीछे काम करना पड़ता है। इस प्रकार अगर देखा जाये तो आधुनिक विज्ञानं का सबसे अधिक प्रभवित करने वाला पहलु यह है कि इसके लिए विशाल धनराशि, उपकरण और बहुत से कामगार और क्रियाकल्प का विस्तार आवश्यक है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विज्ञान के संघटन ने न केवल मित्र राष्ट्रों को युद्ध में विजय पाने में सहयता प्राप्त की बल्कि एक ऐसा पैटर्न भी स्थापित किया जिसने युद्धोत्तर विश्व को अत्यधिक प्रभवित किया। संयुक्त राज्य और सोवित संघ दोनों ही शक्तियों ने विज्ञान और प्रौघोगिकी का प्रयोग न केवल आंतक का संतुलन बनाये रखने दी राजीतिक रणनीति के लिए किया बल्कि विविध क्षेत्रों। जैसे अंतरिक्ष और महासागर अन्वेक्षण, जन्म और रोग नियंत्रण, मौसम अवशोधन और विश्व्यापी संचार के लिए भी प्रयोग किया।
अंतराष्ट्रीय राजनीती पर प्रभाव:
अंतराष्ट्रीय राजनितिक प्रक्रिया में कोई भी मुख्य तत्व वैज्ञानिक क्षमताओं और प्रौघोगिकी विकास से अछूता नहीं रहा। यूरोप में भूभागीय राज्यों के उदय और धीरे धीरे अंतराष्ट्रीय पढ़ती के विकास में नयी प्रौघोगिकीयो क्र प्रयोग ने महतवपूर्ण भूमिका निभाई है। 1) भूभागीय राज्य और अंतराष्ट्रीय प्रणाली का उदय:- यूरोप में भूभागीय राज्यों के उदय और धीरे धीरे अंतराष्ट्रीय पद्धति के विकास में नयी प्रौघोगिकीयो के प्रयोग ने महतवपूर्ण भूमिका निभाई है। 15वी शताब्दी में बारूद के यूरोप में आ जाने से यूरोपवासियों ने इस अर्थपूर्ण सैन्य प्रयोग के लिए रख यूरोप ने घुड़सवार सेनिको के स्थान पर बंदूकधारी पैदल सेना खड़ी की। इससे उनके पडोसी देश असुरक्षित हो गए,जिसके कारण वे भी ऐसे ही हथियार प्राप्त करने के लिए विवश हो गए। यूरोप में परिवहन प्रौघोगिकी में प्रगति आ जाने से दूर दूर के स्थानों पर व्यापर करना संभव हो गया। बढ़ते हुए समुन्द्र पर व्यापर राजस्व के नए स्त्रोत के रूप में आया, इससे यूरोप के सम्राट बड़ी सेना बना सकते थे। नयी प्रौघोगिकी ने राज्य प्रणाली की संरचना को भी प्रभावित किया। प्रौघोगिकीय नवनीकरण से राष्ट्र की आर्थिक और सैन्य शक्ति पर भार आने से राज्यों की आनुपातिक स्थिति प्रभावित हुई। जहाँ एक तरफ यूरोप सम्राज्य ध्वस्त हो गया वही दूसरी और अन्य देशो ने अपने आप को धीरे धीरे विकसित कर लिया। 2) विज्ञान और प्रौघोगिकी तथा अंतराष्ट्रीय निर्भरता:- साम्राजयवाद ने यूरोप अमेरिका में संपत्ति के संचयन पर ध्यान केंद्रित किया और विश्व के अन्य भागो में आर्थिक अधिशेष निकाल निकल लाएँ। उपनिवेशवाद समाप्त होने पर यह आशा की गए कि विसकसित अमेरिका और विकाशील परिसरों बीच आर्थिक और प्रौघोगिकी अंतर समाप्त हो जायेगा यह नहीं हुआ बल्कि इन देशो बीच आर्थिक और प्रौघोगिकी अंतर ओर अधिक बढ़ गया। निर्भरता सम्बन्धों के स्वरूप में परिवर्तन निम्नलिखित:- औद्योगिक और विकाशील राष्ट्रों के बीच सम्बन्धों में केवल प्रौघोगिकी हस्तांतरण के अधिक महत्व का परिणाम है।दक्षिण पूर्व एशिया में कुछ देश तथाकथित नए आद्योगिक देश अपनी प्रौघोगिकी क्षमता सुद्र्ड करने में सफल हुए है ओर उनमे कुछ उच्च प्रौघोगिकी के मह्त्वपूर्ण उत्पादक ओर निर्यातक बन गए है। अन्य देश जैसे भारत और ब्राजील ने बाहरी प्रतियोगिता से नवजात उद्योग को बचाने के लिए संरक्षी उपायों के साथ साथ प्रौघोगिकी प्रतिस्थापन आयत करने की निति अपनाई। कुछ (Newly Industrialized Countries- NICs) अपनी प्रौघोगिकी निर्भरता को लगभग आपस में बराबर निर्भरता में बदलने में सफल हुए परन्तु अधिकांश विकाशील देश औद्योगिकी राष्ट्रों से प्रौघोगिकी के आयत पर निर्भर जैसे कुछ केवल हार्डवेयर के लिए निर्भर है जिन्हें वे अपने देश में नहीं बना सकते है। और अन्य अपने स्वदेशी वैज्ञानिक और प्रौघोगिकी प्रयासों को प्रोत्साहन देने के लिए आवश्यक ज्ञान का सतत प्रवाह का प्रयास कर रहे। सूचना और अन्य सेवाओं के लिए विश्वव्यापी प्रोजोगिकीय प्रणालियों का विकास औद्योगिक और विकाशील राष्ट्रों के बीच निर्भरता सम्बन्धो के स्वरूप में एक अन्य व्यापक परिवर्तन प्रणालियों का आर्थिक महत्व लगातार बढ़ है जो 1950 के दशक के अंत में अंतरिक्ष युग के अविष्कार की विशेषताएं है। विश्व प्रौघोगिकी प्रणालियों पर निर्भरता के रूप में महतवपूर्ण वृद्धियां देखी गयी। इन प्रणालियों को देने की क्षमता वाले देशो की संख्या बढ़ रही है अभी तक संयक्त राज्य, रूस और फ्रांस का प्रभुत्व विनिजियक बाज़ार था अब भारत और चीन भी इसमें प्रवेश करने के लिए तैयार है।
3) सैन्य कार्यो पर विज्ञान और प्रौघोगिकी का प्रभाव:- अंतराष्ट्रीय राजनितिक पद्धति में सैन्य शक्ति को मुख्य व्यवस्था सिद्धांत के रूप में देखा गया है। जो सैन्य तत्व सैन्य शक्ति को प्रभावित करते है। वे इस प्रकार अंतराष्ट्रीय कार्यो के लिए भी मह्त्वपूर्ण है। विज्ञान और प्रौघोगिकी में बहुत लम्बे समय से हथियारों में या युद्ध क्षेत्र में निर्णायक श्रेष्ठता की और बढ़ने की क्षमता सिद्ध की है। यह प्रोजोगिकीय लाभ के रूप में विशेष महत्व का रहा है।20वी शताब्दी में प्रौघोगिकी नवनीकरण प्रोत्साहित करने के लिए संस्थागत प्रणाली की प्रगति ने सभी पैरामीटरों जैसे हथियारों में उनके साइज, गति शक्ति या क्षमता बढ़ाने की प्रवर्ति को बढ़ावा दिया है प्रौघोगिकी परिवर्तन और राज्य प्रभुसत्ता:- सम्प्रभुता पर विज्ञान और प्रौघोगिकी का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है।कुछ से विकास कार्य जिन्हे प्रोजोगिकीय परिवर्तनों द्वारा बल मिला या संभव बने गए है आर्थिक पारस्परिक निर्भरता की वृद्धि या निगमों का उदय या अंतराष्ट्रीय संस्थानों की बढ़ती हुई भूमिका या तीव्र विश्वव्यापी संचार को राष्ट्रीय प्रभुसत्ता घटने के करने के रूप में देखा गया। अंतराष्ट्रीय कार्यकलापों के विवरणों की तुलना में राज्य शक्ति में वस्तुतः अपेक्षाकृत कमी हुई है। परन्तु इसने किसी भी मह्त्वपूर्ण तरीको में अंतराष्ट्रीय सम्बन्धो को प्रभावित नहीं किया। जेम्स रोसेना का तर्क है कि प्रमुख प्रेरक बल के रूप में कार्य कर रहे प्रौघोगिकी की गतिशीलता से विश्व राजनीती में आधारभूत परिवर्तन हुआ है। उसका तर्क है कि असंगति तब होती है , जब अंतराष्ट्रीय प्रणाली के प्रमुख पैरामीटर परिवर्तित होते है। और ऐसा परिवर्तन वास्तव में प्रौघोगिकी परिवर्तन के प्रभावों के कारण होते है। राज्य केंद्रीय विश्व के समानंतर और परस्पर व्यापी बहु केंद्रीय विश्व का अभिर्भाव हुआ जिसमे राज्येतर कारको जैसे अंतराष्ट्रीय संगठन बहुराष्ट्रीय निगम और व्यक्ति भी सक्रीय है।