राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो व्यक्ति में देश प्रेम को बढ़ावा देती है।
राष्ट्रवाद एक भावना है जिसका संबंध एक समान स्वदेश, एक समान भाषा, आदर्शों, मूल्यों तथा परंपराओं की समानता और झंडे, गीतो जैसे चिन्हों से एक विशिष्ट समूह की पहचान जोकि उन्हें अन्य से अलग करती है। राष्ट्रवाद की एक महत्वपूर्ण विशेषता विभिन्न सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्तरों के लोगों को एकजुट करने की उसकी क्षमता है। राष्ट्रवाद एक महत्वपूर्ण सामाजिक एवं राजनीतिक घटना चक्र है, जिसमें राष्ट्रों तथा राष्ट्र राज्यों को एक परिभाषीय पहचान देशसन्निहित है यह एक प्रमाणिक सिद्धांत है, जिसमें राजनीति के संबंध में मान्यता व विश्वासों का एक विशिष्ट संचय होता है। यह मानता है कि सभी मनुष्यों की एक और केवल एक राष्ट्रीयता होनी चाहिए जोकि उनकी पहचान व निष्ठा का प्रमुख तत्व हो। राष्ट्रवाद का उदय परिचित जमीन तथा जनता के उस लगाव से होता है, जोकि देशभक्ति का आधार माना जाता है। राष्ट्रवाद में जनता को एकजुट करने की शक्ति होती है।
राष्ट्रवाद की परिभाषा:-
हेयस के अनुसार राष्ट्रवाद का प्रयोग अनेक तरीकों से किया गया है और आमतौर पर इसका प्रयोग “एक राष्ट्रीयता के सदस्यों में जिनके पास शायद एक राष्ट्रीय राज्य पहले से ही है एक मानसिक स्थिति को दर्शाने के लिए किया जाता है एक राष्ट्रीय राज्य अन्य किसी भी प्रकार की निष्ठा से सर्वोच्च होता है अपनी राष्ट्रीयता के प्रति घमंड करना उसकी स्वाभाविक परम श्रेष्ठ तथा उनके मिशन पर विश्वास रखना राष्ट्रवाद के अभिन्न अंग है”।
गेललनर लिखते हैं कि राष्ट्रवाद मुख्य तौर पर एक राजनीतिक सिद्धांत है, जोकि यह मानता है कि “राजनीतिक इकाई और राष्ट्रीय इकाई में एकरूपता होनी चाहिए राष्ट्रवादी भावना इस सिद्धांत के उल्लंघन होने के फलस्वरूप उठने वाले क्रोध की भावना है अथवा उसकी परिपूर्णता से उठने वाली संतुष्टि की भावना है”।
गियुबीरनाऊ के अनुसार राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में तीन तत्वों ने मुख्य तौर पर सहायता की पहला छपाई का विकास तथा देशी भाषाओं की रचना दूसरा राष्ट्र तथा संस्कृति के बीच संबंध और तीसरा सामान चिन्ह और रीतिया।
राष्ट्रवाद के सिद्धांत:-
राष्ट्रवाद के विभिन्न सिद्धांत है इन सिद्धांतों को हम दो व्यापक श्रेणियों में बांट सकते हैं:- मौलिकवाद सिद्धांत तथा आधुनिकवाद सिद्धांत
मौलिकवाद राष्ट्रों के इतिहास पर केंद्रित करता है, जोकि प्राचीन तथा आस्मरणीय हैं। मौलिकवाद राष्ट्र को एक सांस्कृतिक समुदाय, आस्मरणीय, जड़दार, सजीव दरार रहित और एक लोकप्रिय समुदाय के रूप में देखते हैं, जोकि जनता की आवश्कताओ तथा आदर्शों का प्रतिबिंब होता है। इस सिद्धांत के प्रतिपादकों के लिए अनुवांशिक संबंध तथा संस्कृति अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दूसरी तरफ आधुनिकवादी राष्ट्र को एक राजनीतिक समुदाय के रूप में देखते हैं जिसका निर्माण क्रांति एवं जन एकत्रीकरण के युग के लिए किया गया। यहाँ राष्ट्र को विशिष्ट वर्ग की सृष्टि के रूप में देखा जाता है, जिसका उद्देश्य जनता की भावनाओं तथा क्रियाओं को नियंत्रित तथा प्रभावित करना होता है। वे राष्ट्र को विभाजित और धर्म, लिंग तथा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न सामाजिक समूह के रूप में देखते हैं। इन सामाजिक समूहों की भिन्न-भिन्न आवश्यकताएं होती है और इसीलिए ये प्रथक समूहों में बंटे होते हैं।